राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान उत्तराखंड का कड़वा सच
- Kamal Kant Kulhada
- Aug 19, 2017
- 3 min read

आप जो भी हैं,जहाँ कहीं भी हैं आपसे एक निवेदन हैं.....ज़रा थोड़ा वक़्त देकर इसे पढ़ें। साथियों, ये राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान उत्तराखंड का कड़वा सच हैं।ये राजनीतिक तुष्टिकरण की एक बेहद शर्मनाक कहानी हैं।ये बिखरते सपनों की कातर पुकार हैं। कहने को हम एक राष्ट्रीय महत्व(national importance) के कॉलेज में हैं।प्रथम दृष्टया लगता हैं कि बहुत बड़ा सा कोई कॉलेज होगा,ठीक IIT जैसा।बड़ा सा एक कैंपस होगा,बेहतर और अनुभवी प्रॉफेसर्स होंगे,उच्च शिक्षा के लिए जो भी ज़रूरी वातावरण हैं वो होगा। आपका ये अनुमान लगाना जायज़ हैं।हालाँकि ऐसा हैं कुछ नहीं।चलिए...सच्चाई से मैं आपको अवगत कराता हूँ।और चूँकि मैं थर्ड ईयर का स्टूडेंट हो तो आप ऐसा बिल्कुल ना मानिये कि ये बातें मैं भावावेश में कह रहा हूँ। जी नही ऐसा कतई नहीं हैं। तीन साल पहले जब पहली बार यहाँ कदम रखा था तो लगा कि चलिए अब आखिर मेहनत रंग ले ही आयी। भारी भरकम उम्मीदों और कुछ कर गुजरने की चाह लिए मैं भी , दूसरे मेरे साथियों की तरह यहाँ चला आया था। ........ मगर यहाँ आने के बाद जब सच से सामना हुआ तो सब उम्मीदें मटियामेट हो गयी। पहले दिन पता चला कि वाह... अपना तो कैंपस ही पॉलीटेक्निक कॉलेज में चल रहा हैं।पॉलीटेक्निक कॉलेज,वो भी पूरा नही बल्कि आधे से भी कम। हॉस्टल्स नही थे।जो थे वहाँ एक कमरे में 6-6 स्टूडेंट्स को घुसाया हुआ था। 50 बच्चों पर 3 टॉयलेट्स हैं।सुबह जो दर्द-विदारक स्थिति होती हैं मैं उसका वर्णन नही कर सकता ।जो अंदर नही रहना चाहते थे वो बाहर महँगे कमरों को लेने को मज़बूर हुए। हॉस्टल्स छोड़िये,क्लासरूम पूरे नहीं हैं।इसका खामियाज़ा हम अपने पूरे दिन की बलि देकर चुकाते हैं।सुबह 8 से शाम 6 बजे तक कक्षाये।यहीं नहीं क्लासरूम ऐसे हैं कि आप एक घंटा बैठ जाइए तो चक्कर आ जाने लगता हैं।गर्मियों में स्टूडेंट्स तो दूर फैकल्टी के हाल ख़राब हो जाते हैं। और चूँकि फैकल्टी ज्यादातर सविंदा बेसिस पर हैं तो वो बेचारे चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाते।क्या पता किस पल उनका ही पत्ता साफ हो जाये !! लैब्स के हालात तो और भी गज़ब के हैं।आप कितने भी बड़े क्रिएटिव हो...चाहे कितना भी रिसर्च कर सकते हो मगर ठहरिए...आप nit uk की लैब्स आपको बर्बाद करके रहेगी। CRO अगर बिना हाथ से बजाए चल जाये तो समझिए,आपका दिन अच्छा हैं।सारे इंस्ट्रूमेंट्स का लगभग यही हाल हैं।और किसी तरह अगर कोई छात्र संघर्ष करके कोई प्रोजेक्ट तैयार करने की कोशिश करता भी हैं तो इस शहर में ic तक नही मिलती।फिर आप 100 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर से सामान मंगवाइये। कंपनियाँ प्लेसमेंट के लिए कैंपस नही आना चाहती।कंपनियां छोड़िये ,यहाँ फैकल्टी तक नही आना चाहती। संस्थान की कितनी गरिमा हैं इस बात का अंदाजा इसी से लग जाता हैं कि निमंत्रण देने के बावजूद अभी हाल ही में नियुक्त किये गए डायरेक्टर यहाँ नही आना चाहते। प्लेसमेंट ट्रेंड्स में हम अपने बाद बनी NIT's से भी पिछड़े हैं।और यहाँ कोई आये भी क्यों? एक राष्ट्रीय महत्व के संस्थान को इतने दुर्गम स्थान पर बनाना।इसका कोई तुक नहीं हैं।बच्चे चाह कर भी gate, cat, tofel और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी नही कर पाते क्योंकि यहाँ ना कोई कोचिंग संस्थान हैं और ना ही माहौल। यहाँ के वाशिंदों के लिए हम चलते-फिरते बटुओ से ज्यादा कुछ नहीं हैं।समस्याएं एक नही हैं...हज़ार हैं।और ऐसी ऐसी हैं कि गावँ का सरकारी स्कूल भी शर्मा जाएं।मगर हमारी सुध लेने वाला कोई नही हैं। और हो भी क्यों,हम वोटबैंक थोड़े ही हैं। हम तो बहुत अदने से विद्यार्थी हैं जो जीवन में कुछ करना चाहते थे।जो माँ -बाप के सपने पूरे करना चाहते थे। हम तो अभागें बच्चें हैं जिनके करियर और सपनों की कीमत चाय की दुकानों और किराए के कमरों से बहुत कम हैं। हम तो पहाड़वाद की भट्टी में जलते और वोटबैंक की जकड़ में फँसे 'बेचारे' हैं। मगर, अब हम फैंसला कर चुके हैं।बहुत सह चुके।बहुत बर्बाद कर चुके अपने जीवन को।अब और नहीं। हम अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जा रहे हैं।हड़ताल कहिये.....आंदोलन कहिये....क्रांति कहिये....या बेवकूफ़ी कहिये। बस अब और नही सहेंगे।अब जवाब लेकर रहेंगे। आपसे इतनी सी गुज़ारिश हैं कि इसे शेयर करिये,बात को आगे बढ़ाने में मदद करिये। बहुत बहुत धन्यवाद !! -NIT(UK) का एक अभागा छात्र। #CampusForNitUk
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